बालाघाट। बैहर विकासखंड के अंतर्गत आने वाली बिठली पंचायत, जिसका अति नक्सल प्रभावित दुगलई गांव ऐसा गांव है जहां विकास काफी पिछडा हुआ है। दुगलई के लिये पिछले 12 वर्षो में अगर कुछ बदला है, तो साल बदला है, सरकारे बदली है,  सियासत बदली है, जनप्रतिनिधि बदलें है...लेकिन अफसोस दुगलई की तस्वीरे नही बदली। अखबारो के जरिये कई बार ग्राम दुगलई में विकास की जरूरतो को लेकर बाते रखी गई। जहां जिला प्रशासन का ध्यान भी आकर्षित कराया जा चुका है, लेकिन प्रशासन की ओर से प्रयास सिफर रहा है। इस गांव में विकास की इबारत लिखने कुछ समय तो लगेगा लेकिन इसके पूर्व एक बार पुन: जिला प्रशासन का ध्यान यहां की समस्याओं की ओर करना चाहते है। आबादी की दृष्टी से दुगलई काफी छोटा गांव है और घने जंगल में भी बसा है। जिस कारण यंहा कोई आना जाना मुनासिब नही समझता। लेकिन शासन प्रशासन को इस गांव की तस्वीरे बदलने के लिये अब तेजी से विकास की गंगा बहानी होगी ताकि यहां के वांशिदो का भी उत्थान हो सकें।
               समस्याओं के जाल में जकडे दुगलई गांव की कहानी बेहद मार्मिक है। यहां की अपनी परम्परा है, जहां लोग मशगुल जीवन गुजार रहे है, जिन्हे ना तो कल भी फिक्र होती है और ना ही बच्चो के भविष्य की। शिक्षा को लेकर यहां हालात खराब है...चिकित्सा सेवा भी ठप्प है। आवास, रोजगार तो स्वयं ग्रामीण तलाश लेते है। लेकिन जिस समस्या का निराकरण करना ग्रामीणो के वश में नही है उस समस्याओ के निराकरण के लिये अब जिला प्रशासन को जल्द से जल्द ठोस कदम उठा लेना चाहियें।
12 वर्षो से क्षतिग्रस्त है शाला भवन
बालाघाट जिले के अधिकांश आदिवासी गांवो में स्कूल भवन खंडहर बने हुए है, जिनकी देखरेख व जिर्णोद्धार के लिये कोई एक्शन नही लिया गया है। अति-नक्सल प्रभावित दुगलई गांव में भी प्राथमिक शाला भवन नही है। यहां के प्राथमिक शाला भवन को खंडहर में तब्दील हुए करीब 12 वर्ष बीत चुके है, जिसका जिर्णोद्धार नही हो पाया है। स्कूल शिक्षा विभाग का स्कूल शाला भवनो के होने या ना होने एवं भवन के जिर्णोद्धार के लिये भी कोई निर्देश जारी नही किये है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि शासन प्रशासन का शिक्षा के क्षेत्र में भी ध्यान कमजोर होता जा रहा है। यदि शिक्षा के स्तर को बढावा देना अति आवश्यक समझा जाये तो गांव गांव स्कूल भवन होना आति आवश्यक है। वर्तमान में दुगलई गांव में प्राथमिक शाला भवन ना होने से बच्चे, आंगनवाडी भवन की छत नीचे शिक्षा ग्रहण कर रहे है, जो सुविधा जनक भी नही है।