कटंगी। सरकारी कागजों में हेर-फेर कर एक आदिवासी की जमीन पर गैर आदिवासियों के द्वारा जमीन हड़पने का मामला प्रकाश में आया है। यह मामला तिरोड़ी थाना क्षेत्र के ग्राम मिरगपुर निवासी मृतक आदिवासी शख्स रतिराम वरकड़े की पाढऱवानी में स्थित जमीन से जुड़ा हुआ है जिस पर अवैध तरीके से कब्जा कर बीते कई सालों से निजी मैंगनीज खदान का संचालन हो रहा है. यह आरोप मृतक रतिराम वरकड़े के पुत्र पारस वरकड़े और पोते गोंविद वरकड़े ने तिरोड़ी थाने में गुरूवार को शिकायत करते हुए लगाया है। उन्होंने जमीन से जुड़े तमाम सरकारी कागजों को प्राप्त करने के बाद जमीन पर अपना दावा करते हुए बताया कि उनकी जमीन पर मेसर्स डी.पी.राय नाम की खदान संचालित हो रही है और वह अपनी जमीन को वापस पाने के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रहे है। मगर, अधिकारी सुनवाई नहीं कर रहे। सरकारी कागजों के हिसाब से 1954 में खसरा नंबर 4/2 की भूमि रतिराम गोड़ के नाम दर्ज है लेकिन 1967 में जामवंती योगेश चंद हजारी के नाम दर्ज हुई और मौजूदा वक्त में इस जमीन पर अखिलेश हजारी, राजेश हजारी, दिनेश हजारी, अवधेश हजारी, ब्रजेश हजारी, आशीष हजारी और अभिषेक राय के नाम दर्ज हो चुकी है। पीडि़तों ने वकील के माध्यम से बालाघाट कलेक्टर सहित खदान संचालक और अन्य 06 लोगों को करीब 02 पहले नोटिस तामिल करवाया था किन्तु नोटिस प्राप्तकर्ताओं ने कोई जवाब नहीं दिया है। अब पीडि़त आदिवासी सरकार और वरिष्ट अधिकारियों से न्याय की उम्मीद लगाए हुए है।
आदिवासी की जमीन सामान्य वर्ग के नाम हुई दर्ज     
जमीन घोटाले को लेकर एक बड़ा सवाल यह है कि जो जमीन आदिवासी की है वह गैर आदिवासियों के नाम कैसे दर्ज हो गई। रतिराम गोड़ की जमीन जामवंती हजारी और फिर अन्य के नाम दर्ज होना ही जांच का विषय है। प्रथम दृष्टया तो मामला साफ तौर पर समझ आ रहा है कि करीब 50 साल पहले ही उस वक्त कागजों में हेर-फेर कर आदिवासी की करीब 5 एकड़ जमीन को अपने नाम कर लिया गया है और यह काम बिना अधिकारियों की मिलीभगत के संभव नहीं है। मृतक रतिराम के पुत्र पारस ने बताया कि अज्ञानता की कमी के कारण उन्होंने इतने सालों तक कुछ भी नहीं किया लेकिन जब उनके पुत्र गोंविद वरकड़े को शिक्षा हासिल करने के बाद जमीन की समझ आई तो उन्होंने जमीन से जुड़े दस्तावेज की खोजबीन शुरू की करीब डेढ़ साल पहले जमीन की पावती उनके हाथ लगी और उन्होंने अपनी जमीन के बारे में सरकारी कार्यालयों से जानकारी एकत्रित करनी शुरू की तो पता चला कि दादा की जमीन को गैर आदिवासियों ने अपने नाम दर्ज करवा ली है।
बिना खरीदी-बिक्री हो गई दर्ज
वैसे तो किसी भी गोंड आदिवासी की जमीन को गैर आदिवासी के द्वारा खरीद पाना बेहद मुश्किल है। तमाम जटिलताओं के बाद कई बार इसके लिए अनुमति मिल पाती है लेकिन रतिराम गोंड की जमीन की कोई खरीदी बिक्री नहीं हुई है और ना ही इसका कोई रिकार्ड रजिस्ट्री ऑफिस, तहसील कार्यालय, एडीएम कार्यालय, कलेक्टर कार्यालय में है। ऐसे में गोंड व्यक्ति की जमीन कैसे अन्य गैर आदिवासी के नाम दर्ज हो गई यह एक बेहद ही गंभीर मामला है। रतिराम के बेटे और पोते का कहना है कि जामवंती योगेश चंद के साथ किसी प्रकार का कोई अनुबंध भी नहीं किया गया। हालांकि उन्होंने बताया कि योगेश चंद मेसर्स डी।पी।राय खदान के कानूनी सलाहकार (वकील) थे जिनकी पत्नी के नाम रतिराम की जमीन दर्ज है। बहरहाल, आदिवासी पुत्र और पोता अपनी जमीन वापस पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे है।