बालाघाट। केंद्र सरकार की कायाकल्प योजना फेस टू के तहत सरकारी अस्पतालों का निरीक्षण किया जा रहा है। इसी कड़ी में कायाकल्प फेस टू की टीम ने नगर के शहीद भगत सिंह जिला अस्पताल का निरीक्षण किया। जहां निरीक्षण पर पहुंची इस टीम ने करीब 5 घंटे तक ट्रामा सेंटर, जिला अस्पताल, एक्स-रे रूम, कैजुअल्टी, सीटी स्कैन, महिला पुरुष वार्ड, इंफ्रास्ट्रक्चर की व्यवस्था, रिकॉर्ड मरीज के साथ चिकित्सको का व्यवहार, और मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं का जायजा लिया। इसके अलावा ओपीडी, इंजेक्शन कक्ष, भंडार कक्ष, बायो वेस्टेज व्यवस्था, हेल्पलाइन फेक्स ऑक्सीजन सप्लाई व्यवस्था आदि का सूक्ष्मता के साथ निरीक्षण किया। जहां निरीक्षण की शुरुआत में तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा, लेकिन जैसे ही यह टीम कैजुअल्टी पहुंची, वैसे ही लाइट गुल हो गई। फिर क्या था इस टीम ने अंधेरे में ही निरीक्षण जारी रखा, जहां स्टाफ नर्स मोबाइल टॉर्च की रौशनी दिखाते रहे और टीम निरीक्षण करते रही। इस दौरान टेक्निकल स्टाफ के कार्यों में लापरवाही भी देखने को मिली। वही बताया गया है कि जिला अस्पताल को दो बार अवार्ड भी मिल चुका है लेकिन जिला अस्पताल व्यवस्थाओं को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहता है।
व्यवस्थाओ में कमी फिर भी दो बार मिल चुका है अवार्ड
गौरतलब है कि कायाकल्प योजना के तहत देश, प्रदेश व जिले के हिसाब से रैंकिंग की जाती हैं। इसमें जो भी सर्वश्रेष्ठ होता है उसे पुरस्कृत किया जाता हैं। जहां सुविधाओं में और इजाफा करने के लिए न सिर्फ अतिरिक्त राशि अस्पतालों को मुहैया कराई जाती है बल्कि उन्हें अवार्ड भी दिया जाता है बात अगर जिला अस्पताल की करें तो केंद्र सरकार की कार्यकाल योजना के तहत बेहतर सुविधा दिए जाने के नाम पर जिला अस्पताल को एक नही बल्कि दो-दो बार अतिरिक्त फंड के साथ-साथ दो बार अवार्ड भी मिल चुका है। अब कायाकल्प योजना फेस टू के तहत यहां निरीक्षण कर व्यवस्थाएं देखी जा रही है। लेकिन दो बार अतिरिक्त फंड और दो बार अवार्ड लेने वाले जिला अस्पताल में विद्युत गुल होने पर बैकअप की व्यापक सुविधा नजर आ रही है और ना ही टेक्निकल स्टाफ कार्य करने में सक्षम नजर आ रहा है। जिसका नजरा निरीक्षण के दौरान देखने को मिला। जिसे देखकर ऐसा माना जा रहा है कि इस बार की रैंकिंग में जिला अस्पताल के नंबर में कटौती की जाएगी हालांकि अन्य सुविधाओं के आधार पर जिला अस्पताल को 60 से 70 अंक मिलना तय माना जा रहा है। अब देखना या दिलचस्प रहेगा कि अधिकारी अपने उच्च अधिकारियों को जिला अस्पताल की क्या रिपोर्ट सौपते हैं और उस रिपोर्ट के आधार पर जिला अस्पताल की रैंकिंग को कितने अंक दिए जाते हैं।
मोबाइल की रोशनी में टीम ने लिया हालातो का जायजा
वैसे तो जिला अस्पताल में लाइट गुल होना सामान्य बात नहीं है लेकिन निरीक्षण के दौरान अचानक लाइट गुल होने से टीम को निरीक्षण करने में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। कैजुअल्टी के बेड दवाइयां चिकित्सकों की व्यवहार सहित अन्य उपकरणो के निरीक्षण के दौरान अचानक लाइट गुल हो गई। जहां बैकअप के इंतजाम न होने के चलते लंबे समय तक अंधेरे में ही इस टीम को निरीक्षण करना पड़ा।जहां नर्सिंग स्टाफ, अधिकारी के सामने सामने मोबाइल का टॉर्च दिखाते रहे और उस टार्च की रोशनी से अधिकारी निरीक्षण करते रहे। यह प्रक्रिया जिला अस्पताल में लंबे समय तक देखी गई।
करीब 15 मिनट तक ऑक्सीजन सिलेंडर की चूड़ी नहीं खोल पाया कर्मचारी
निरीक्षण के दौरान उसे वक्त हास्यपद्य स्थिति बन गई जब कायाकल्प योजना टू के अधिकारी एवं मंडला जिला अस्पताल के गायनिक विशेषज्ञ डॉ अरुणेंद्र मूर्ति गौतम ऑटोमेटिक ऑक्सीजन की सप्लाई का निरीक्षण कर रहे थे। इस निरीक्षण के दौरान ऑक्सीजन प्लांट से मरीज के बेड तक ऑक्सीजन की सप्लाई और उसके कार्य का निरीक्षण किया जा रहा था। तभी अचानक से लाइट गुल हो गई। इस पर कायाकल्प टू अधिकारी डॉक्टर गौतम ने मौजूदा स्टाफ से कहा कि लाइट गुल हो गई तो मरीज को ऑक्सीजन सप्लाई कैसे करेंगे?, इस पर उपस्थित स्टाफ ने कहा कि हमारे पास अतिरिक्त आक्सीजन सिलेंडर हमेशा उपलब्ध रहते है। जिससे मरीज को तुरत ऑक्सीजन दे सकते है।अभी यह बात खत्म भी नही हुई थी कि स्टाफ सहित अन्य कर्मचारी, अधिकारी गौतम को सीधे ऑक्सीजन सिलेंडर के पास लेकर गए जिस पर अधिकारी बोले की सिलेंडर से ऑक्सीजन की सप्लाई करके दिखाओ?, इस पर टेक्निकल स्टाफ ऑक्सीजन सिलेंडर का ढक्कन खोलने में जुट गए लेकिन करीब 15 मिनट तक ऑक्सीजन सिलेंडर की चूड़ी नहीं खोल सके। जहां काफी मशक्कत करने पर भी जब ऑक्सीजन सिलेंडर की चूड़ी नहीं खुली तो एक के बाद एक करके ,दो तीन कर्मचारियों ने इस कार्य को करने के लिए अपना हाथ आजमाया लेकिन सभी कर्मचारी नाकाम रहे और कोई भी कर्मचारी ऑक्सीजन सिलेंडर की चूड़ी को नहीं खोल पाया।
ऑक्सीजन सिलेंडर की चूड़ी खोलने पाना पेंसिस की ली गई मदद
जब स्टाफ काफी देर तक ऑक्सीजन सिलेंडर की चूड़ी खोलने में नाकामयाब रहे तो उन्होंने पाना पेंचीस की मदद ली। जहां सिलेंडर के ऊपर ढक्कन में लगी चूड़ी को स्टॉप द्वारा पाने की मदद से ठोक ठोक कर खोलने का प्रयास किया गया। जहां काफी देर तक ठोक पीट करने के बाद स्टाफ ने ऑक्सीजन सिलेंडर को खोलकर सिलेंडर से गैस सप्लाई की व्यवस्था बनाई। जिस पर निरीक्षण करने पहुंचे अधिकारी समझ गए की टेक्निकल स्टाफ को ऑक्सीजन सिलेंडर खोलने की ट्रेनिंग तक नहीं दी गई है या फिर ट्रेनिंग लेने के बाद भी स्टाफ तत्काल सिलेंडर की चूड़ी खोलने में नाकाम रहे हैं ।मतलब साफ है कि यदि कोई इमरजेंसी केस आता है और इसी तरह ऑक्सीजन सिलेंडर खोलकर उसे ऑक्सीजन की सप्लाई की व्यवस्था बनाने की नौबत आई तो मरीज को आक्सीजन देने में टेक्निकल स्टाफ को काफी समय लग सकता है और ऐसा ना हो कि इतनी देर में मरीज की मौत ही ना हो जाए।
बैकअप कि नहीं है व्यवस्था,जनरेटर ने भी नही किया काम
 वैसे तो नियम के मुताबिक न्यायालय जिला अस्पताल कलेक्टर कार्यालय इन जगहों पर लाइट गुल होना नहीं चाहिए लेकिन किसी कारणवश यदि लाइट गुल हो भी जाती है इनवर्टर जनरेटर सहित बैकअप की अन्य व्यवस्थाएं हमेशा रहती है लेकिन मंगलवार को निरीक्षण करने के दौरान यह बात सामने आई की लाइट होने के बाद यहां बैकअप के कोई खास इंतजाम नहीं दिखे। हालांकि लाइट गुल होने पर भागा दौड़ी कर जैसे तैसे जनरेटर शुरू कराया गया। लेकिन जनरेटर शुरू होने के कुछ देर बाद ही बंद हो गया और जिला अस्पताल में एक बार फिर अंधेरा छाया गया।
कायाकल्प अधिकारी ने नहीं दिया कोई बयान
 निरीक्षक को लेकर जब पत्रकारों ने कायाकल्प टू अधिकारी डॉक्टर गौतम से चर्चा करनी चाही तो उन्होंने इस निरीक्षण को लेकर कोई बयान नहीं दिया। जिन्होंने स्वयं को बयान देने के लिए अधिकृत ना होने की बात कहते हुए, निरीक्षक को लेकर पूछे गए सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया और मीडिया कर्मियों से दूरी बना ली।
अनाड़ी ने सिलेंडर खोलने की कोशिश की होगी- दबडग़ांव
जिला अस्पताल सिविल सर्जन डॉ संजय दबडग़ांव ने कायाकल्प फेस 2 योजना के तहत किए गए इस निरीक्षण की जानकारी देते हुए स्पष्ट कर दिया कि जिला अस्पताल में लाइट गुल होने पर बैकअप की व्यवस्था है। लेकिन किन्हीं कारणों के चलते समय पर यह व्यवस्था नहीं बन पाई। वहीं उन्होंने गैस सिलेंडर की चूड़ी ना खोलने वाली बात पर टेक्निकल स्टाफ को अनाड़ी बताते हुए कहा कि हो सकता है कि किसी अनाड़ी व्यक्ति ने ऑक्सीजन सिलेंडर खोलने का प्रयास किया हो और उससे ना खुल पाया हो लेकिन स्टाफ को इसकी पूरी ट्रेनिंग दी गई है।